धनतेरस के दिन धन्वंतरि भगवान की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि यह दिन उनके अवतार का पर्व है। आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि, जो अमृत और औषधियों के साथ समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे, स्वास्थ्य और आयुष्य के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। इस दिन को आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाते रहना चाहिए ताकि हम स्वास्थ्य और आयुर्वेद के सिद्धांतों के महत्व को न भूलें।
इस दिन भगवान धनवंतरी की पूजा- उपासना करने से उत्तम स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और धन का आशीर्वाद मिलता है। प्राचीन काल से आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरी के जन्म को धनतेरस के रूप में मनाया जाता रहा है। धनत्रयोदशी का संबंध धन से नहीं अपितु आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि से है।
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
श्रीधन्वन्तरि हिन्दू मान्यता के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार हैं जिन्होंने आयुर्वेद प्रवर्तन किया। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मन्थन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वन्तरि, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि का अवतरण धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।
इन्हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परम्परा भी है. इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी।
वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धन्वन्तरि को प्राप्त हुआ। जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था वहाँ धन्वन्तरि को अमृत कलश मिला, क्योंकि विष्णु संसार की रक्षा करते हैं अत: रोगों से रक्षा करने वाले धन्वन्तरि को विष्णु का अंश माना गया। विषविद्या के सम्बन्ध में कश्यप और तक्षक का जो संवाद महाभारत में आया है, वैसा ही धन्वन्तरि और नागदेवी मनसा का ब्रह्मवैवर्त पुराण में आया है। उन्हें गरुड़ का शिष्य कहा गया है –
सर्ववेदेषु निष्णातो मन्त्रतन्त्र विशारद: ।
शिष्यो हि वैनतेयस्य शङ्करोस्योपशिष्यक:।।
भगवाण धन्वन्तरी की साधना के लिये एक साधारण मंत्र है: ॐ धन्वन्तरये नमः॥
इसके अलावा उनकी साधना के लिये एक और मन्त्र भी है:
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरये
अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूपाय
श्रीधन्वन्तरीस्वरूपाय श्रीश्रीश्री औषधचक्राय नारायणाय नमः॥
ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय सर्व आमय
विनाशनाय त्रिलोकनाथाय श्रीमहाविष्णुवे नम: ||
अर्थात: परम भगवान् को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वन्तरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिये हैं, सर्वभय नाशक हैं, सररोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वन्तरी को नमन है।
आप सभी सदस्यों को देववैद्यः श्री धन्वंतरि, मोहयाल गुरुवर के जन्मोत्सव (कार्तिक, कृष्ण पक्ष त्रयोदशी) की सपरिवार बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ। भगवान विष्णु के अवतार श्री धन्वंतरि सभी की मनोकामनाएं पूर्ण कर सुख-शान्ति, समृद्धि व आरोग्यता के साथ हम सभी पर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखें।
ॐ श्री धन्वंतराये नमः॥ शुभ धनतेरस
आप सभी को धनतेरस अर्थात भगवान धन्वंतरि जी के प्राकट्योत्सव की भी शुभकामनाएं
In urban India Dhanteras (Sanskrit: धनतेरस), also known as Dhanatrayodashi (Sanskrit: धनत्रयोदशी), is also celebrated as the first day that marks the festival of Diwali.
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