🌞 आप सभी को शुभ मकर संक्रान्ति 🚩
उदारता, दान-पुण्य, धर्म परायणता, समृद्धि और संस्कृति के रंगों से भरे मंगलमय उत्तरायण महापर्व मकर संक्रान्ति की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। इस पावन पर्व पर सभी के जीवन में खुशहाली, संपन्नता और नवीन ऊर्जा का संचार हो, ऐसी प्रभु से कामना है।
मकर संक्रान्ति में मकर शब्द सौर-मंडल की बारह राशियों में से एक राशि है जिसके स्वामी शनि ग्रह हैं। संक्रांति का अर्थ होता है- संक्रमण अर्थात ग्रह का प्रवेश करना।
मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, सूर्य इसी दिन से उत्तरायण भी होते हैं। उत्तरायण सूर्य का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना गया है और इसे देवताओं का दिन भी कहा गया है। इसी दिन से दिन की अवधि बढ़ती है और रात की अवधि घटती चली जाती है। सूर्य के इस राशि परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन मानते हैं।
एक वर्ष में सूर्य दो बार अपनी स्थिति बदलता है। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो सूर्य की दिशा उत्तरायण हो जाती है। वहीं, जून को सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। इस समय सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करता है। धार्मिक ग्रंथों में सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन के महत्व को बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य दक्षिणायन होता है तो पूजा, जप, तप का महत्व बढ़ जाता है। इस समय में पूजा और साधना करने से सभी विकार दूर हो जाते हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इसकी महत्ता का उल्लेख भगवत गीता में किया है। आइए, जानते हैं-
भगवान श्रीकृष्ण भागवत गीता में अपने सखा अर्जुन से कहते हैं- हे अर्जुन! जब सूर्य उत्तरायण हो, दिन का समय हो और पक्ष शुक्ल हो। उस समय अगर कोई व्यक्ति अपने प्राण का त्याग करता है तो वह इस मृत्युभवन पर लौटकर नहीं आता है। वहीं, जो व्यक्ति निशाकाल में, कृष्ण पक्ष में और सूर्य के दक्षिणायन में अपने प्राग त्यागता है, वह चंद्रलोक को जाता है। जहां से उसे वापस मृत्युलोक में आना पड़ता है।
इसी कारणवश भीष्म पितामह महाभारत युद्ध के बाद भी मृत्यु शैया पर पड़े रहे और सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते रहे। जब सूर्य उत्तरायण हुआ तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर अंतिम सांस ली। धार्मिक ग्रंथों में सूर्य के उत्तरायण को शुभ माना गया है। इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। इस अवधि में धार्मिक कार्यों का निर्वाह किया जाता है।
गुरूवार १४ जनवरी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य उत्तरायण के हो जाएंगे, अर्थात सूर्य पृथ्वी के उत्तरी भाग में अपना अधिकाधिक प्रकाश उत्सर्जित करेंगे।
♨️ मकर संक्रान्ति का महत्व ♨️
माघे मासे महादेव यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्तवा सकलान भोगान अंते मोक्षम च विन्दति॥
अर्थात्:- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन से मलमास खत्म होकर शुभ मास प्रारंभ हो जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करना सौ गुणा फल देता है। पुराणों में इस दिन घी और कंबल दान करने की अपार महिमा बताई गई है। माना गया है कि इस दिन घी और कम्बल दान करने वाला सभी भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
इस जीवंत भारतीय त्यौहार का गहरा महत्व सूर्य और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रति उनके समर्पण में है। यह ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के लिए धन्यवाद और प्रार्थना करने का समय है जो हमारे जीवन और कल्याण के लिए अपरिहार्य हैं। लोग पूजा करते हैं और उन सभी सफलता और समृद्धि जो उन्हें मिलती है, के लिए भगवान सूर्य को धन्यवाद देते हैं।
इस अवधि को उत्तरायण काल भी कहा जाता है। यह उत्सव चार दिनों तक चलता है और लोगों के पवित्र नदियों जैसे गंगा, गोदावरी, यमुना आदि में डुबकी लगाने से चिह्नित किया जाता है। इस दिन, देश के विभिन्न हिस्सों में कई मेलों का आयोजन किया जाता है। उनमें से सबसे लोकप्रिय कुंभ मेला है जो प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में हर १२ साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इस दिन आयोजित होने वाले अन्य मेलों में प्रयाग में माघ मेला (मिनी कुंभ मेला), पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में टुसू मेला और गंगा नदी पर गंगासागर मेला शामिल हैं।
♨️ मकर संक्रान्ति का वैज्ञानिक महत्व ♨️
- मकर संक्रान्ति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का महत्व बहुत है।
- मकर संक्रान्ति में उत्तर भारत में ठंड का समय रहता है। ऐसे में तिल-गुड़ का सेवन करने के बारे में विज्ञान भी कहता है। ऐसा करने पर शरीर को ऊर्जा मिलती है। जो सर्दी में शरीर की सुरक्षा के लिए मदद करता है।
- इस दिन खिचड़ी का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर को रोग-प्रतिरोधक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।
- वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहां प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े, जब तक मकर संक्रान्ति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।
- इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है।
- पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है।
- इसलिए इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है।
♨️ पौराणिक बातें-धार्मिक कारण ♨️
- मकर संक्रान्ति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं।
- उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा गया है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है।
- इसी दिन भागीरथ के तप के कारण गंगा मां नदी के रूप में पृथ्वी पर आईं थीं और राजा सगर सहित भगीरथ के पूर्वजों को तृप्त किया था।
- शास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रान्ति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व उपनिषद में भी किया गया है।
♨️ संक्रान्ति तिथि ♨️
संक्रान्ति की तिथि बदलना, खगोलीय घटना है। कुल बारह राशियां है और माह भी बारह हैं। सूर्य प्रत्येक माह अपनी राशि बदलता है। प्रत्येक राशि में ३० अंश (डिग्री) होते हैं। इस तरह से सूर्य का एक दिन १ अंश के बराबर होता है और इसीलिए वह ३० अंश पूरे होते ही राशि बदलते हैं। पृथ्वी सौरमंडल में अपने अक्ष पर तो घूमती ही है, साथ ही अपने अक्ष पर घूमते हुए अपने स्थान में भी परिवर्तन करती रहती है। पृथ्वी के इस व्यवहार के कारण लगभग प्रत्येक २७,५०० वर्ष के बाद पृथ्वी के स्थान में व्यापक परिवर्तन आ जाता है। इसीलिए सौर स्थिति पर आधारित इस पर्व की तिथि में भी परिवर्तन आता है।
♨️ विशेष पकवान 🚩
शीत ऋतु में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी घात करती हैं। इसलिए इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान्न या पकवान बनाये, खाये और बांटे जाते हैं। इन पकवानों में गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी मौजूद होते हैं। इसलिए उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है तथा गुड़ – तिल, रेवड़ी, गजक आदि का प्रसाद बांटा जाता है।
卐 हरि ॐ 卐 🚩
Info Source: Facebook post of Mohyal Sabha
+ There are no comments
Add yours